बंदर सभा
राजा बन्दर देस मैं रहें इलाही शाद।
जो मुझ सी नाचीज को किया सभा में याद॥
किया सभा में याद मुझे राजा ने आज।
दौलत माल खजाने की मैं हूँ मुँहताज॥
रूपया मिलना चाहिये तख्त न मुझको ताज।
जग में बात उस्ताद की बनी रहे महराज॥5॥
ठुमरी जबानी शुतुरमुर्ग परी के,
आई हूँ मैं सभा में छोड़ के घर।
लेना है मुझे इनआम में जर॥
दुनिया में है जो कुछ सब जर है।
बिन जर के आदमी बन्दर है॥
बन्दर जर हो तो इन्दर है।
जर ही के लिये कसबो हुनर है॥6॥
गजल शुतुरमुर्ग परी की बहार के मौसिम में,
आमद से बसंतों के है गुलजार बसंती।
है फर्श बसंती दरो-दीवार बसंती॥
आँखों में हिमाकत का कँवल जब से खिला है।
आते हैं नजर कूचओ बाजार बसंती॥
अफयूँ मदक चरस के व चंडू के बदौलत।
यारों के सदा रहते हैं रुखसार बसंती॥
दे जाम मये गुल के मये जाफरान के।
दो चार गुलाबी हां तो दो चार बसंती॥
तहवील जो खाली हो तो कुछ कर्ज मँगा लो।
जोड़ा हो परी जान का तैयार बसंती॥7॥
होली जबानी शुतुरमुर्ग परी के,
पा लागों कर जोरी भली कीनी तुम होरी।
फाग खेलि बहुरंग उड़ायो ओर धूर भरि झोरी॥
धूँधर करो भली हिलि मिलि कै अधाधुंध मचोरी।
न सूझत कहु चहुँ ओरी।
बने दीवारी के बबुआ पर लाइ भली विधि होरी।
लगी सलोनो हाथ चरहु अब दसमी चैन करो री॥
सबै तेहवार भयो री||8||